Krishna Janmashtami 2024: श्री वृंदावन धाम की पावन भूमि पर करें कृष्ण भक्ति का अनुभव, Newzsarthi के साथ जुड़ें इस भक्ति यात्रा में
Krishna Janmashtami के अवसर पर वृंदावन धाम में भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ा है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब रहे हैं। वृंदावन की गलियों में राधे-राधे के नारे गूंज रहे हैं और हर कोई कान्हा के जन्मोत्सव की तैयारियों में जुटा हुआ है। रज, पताकाएं और हवाएं सभी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति को नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही हैं।
इस अवसर पर वृंदावन के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया है। श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे हैं और उनके जन्मोत्सव की खुशियों में डूब रहे हैं।
पुलिस और प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था की है। वृंदावन में Krishna Janmashtami की धूम देश-विदेश में फैली हुई है और यहां की भक्ति का स्वरूप देखने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं।
वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में एक अनोखी परंपरा: सिर्फ Krishna Janmashtami पर होती है मंगला आरती
धार्मिक नगरी वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी मंदिर में एक अनोखी परंपरा है, जहां साल में सिर्फ एक बार मंगला आरती की जाती है, वह भी Krishna Janmashtami पर। मंदिर के प्रवक्ता श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि पहले यहां भी रोज मंगला आरती होती थी, लेकिन पांच दशक पहले उनके पूर्वजों ने यह निर्णय किया कि भगवान श्रीकृष्ण को रासलीला छोड़कर मंदिर आने में कष्ट होता है, इसलिए मंगला आरती बंद कर दी गई।

श्रीनाथ गोस्वामी के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण निधि वन में राधा रानी और सखियों के साथ रास रचाते हैं, और सुर-संगीत के आधार पर ही प्रभु का प्राकट्य हुआ है। इसलिए, मंदिर में हर रोज होने वाली मंगला आरती को बंद कर दिया गया और सिर्फ जन्माष्टमी पर की जाती है।
ह परंपरा वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाती है और श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और दर्शन से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।
वृंदावन का निधि वन: एकमात्र स्थान जहां आधुनिकता का नहीं है असर
बांके बिहारीजी मंदिर के प्रवक्ता ने बताया कि वृंदावन में आधुनिकता का असर दिखाई दे रहा है, लेकिन निधि वन अपने मूल स्वरूप में बरकरार है। यह स्थान साढ़े पांच हजार साल पहले द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के रासलीला का साक्षी रहा है।
मान्यता है कि निधि वन में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। यहां की लता-पताएं गोपियों का रूप लेकर महारास में शामिल होती हैं। रास के बाद निधि वन परिसर में स्थापित रंग महल में प्रभु शयन करते हैं।
रंग महल में प्रतिदिन प्रसाद (माखन मिश्री) रखा जाता है, जो हर सुबह बिखरा हुआ मिलता है। यह स्थान अत्यंत पवित्र और रहस्यमयी माना जाता है और श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
मथुरा के कारागार में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, श्रद्धालुओं की जांच के बाद ही मिल रही है जन्मस्थली में एंट्री
श्रीकृष्ण जन्मस्थली में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है, लेकिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। कारागार के बाहर कंस के द्वारपालों के रूप में पुतले खड़े हैं और मुख्य प्रवेश द्वार पर सिपाही कड़ी सुरक्षा में तैनात हैं।
श्रद्धालुओं को जन्मस्थली में जाने से पहले अपनी सभी electronic devices, mobile और camera जमा करने होते हैं। इसके लिए प्रवेशद्वार के बाहर निजी लॉकर्स की सुविधा है, जहां मात्र दो रुपये प्रति नग के हिसाब से शुल्क देकर श्रद्धालु अपनी डिवाइस सुरक्षित रखवा सकते हैं।
श्रद्धालुओं की जिज्ञासा और भक्ति के ज्वार के सामने परिक्रमा के बाद हुई थकान और अन्य बाधाएं उन्हें और उत्साहित करती हैं। वे स्वतः ही कारागार के उस कक्ष की ओर बढ़ते जाते हैं, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
वृंदावन के श्रीराधा दामोदर मंदिर में अनोखे तरीके से मनाई जाती है Krishna Janmashtami, सुबह 10 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक होता है उत्सव
वृंदावन के प्राचीन श्रीराधा दामोदर मंदिर में Krishna Janmashtami का उत्सव अनोखे तरीके से मनाया जाता है। यहां उत्सव रात्रि में नहीं, बल्कि सुबह 10 से दोपहर 12:30 बजे के बीच मनाया जाता है।
मंदिर के प्रधान सेवक कृष्णा गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप है और उन्हें रात्रि में जगाकर उत्सव मनाए जाने से कष्ट होता होगा। इसलिए, यहां सुबह में उत्सव मनाया जाता है।
Krishna Janmashtami पर यहां दो दिन तक प्रभु का अलौकिक शृंगार कर नंदोत्सव मनाया जाता है। छप्पनभोग की विशेष झांकी के साथ बधाईगान होता है। मंदिर में श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा सेवित श्रीराधा छैल चिकनियांजी के श्रीविग्रह भी विराजमान हैं।
श्रीराधा दामोदर मंदिर की स्थापना संवत 1599 में श्री गौड़यवैष्णव संप्रदाय के श्रीरूप गोस्वामी ने की थी। यह मंदिर वृंदावन के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।
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