UPA सरकार (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस), ने भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2004 से 2014 तक सत्ता में रही UPA सरकार ने कई महत्वपूर्ण नीतियों और योजनाओं की शुरुआत की। UPA सरकार के शासनकाल में हुए सुधारों में से एक बड़ा सुधार था “लेटरल एंट्री” की सिफारिश, जिसका श्रेय UPA सरकार ने स्वयं को दिया है।
UPA सरकार का दावा
UPA सरकार का कहना है कि “लेटरल एंट्री” का विचार उनके शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था। विशेष रूप से, UPA सरकार के एक वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने “लेटरल एंट्री” की अवधारणा को समर्थन दिया था। उनके अनुसार, प्रशासनिक तंत्र को और अधिक प्रभावी बनाने और विशेषज्ञता को जोड़ने के लिए यह सिफारिश की गई थी।
UPA सरकार का दावा है कि उन्होंने पहली बार “लेटरल एंट्री” का विचार प्रस्तावित किया था, ताकि सरकारी सेवाओं में बाहरी विशेषज्ञों को शामिल किया जा सके। इस कदम का मुख्य उद्देश्य था कि विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी पेशेवरों को सिविल सर्विस में शामिल किया जाए, ताकि नीति निर्माण और क्रियान्वयन में उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाया जा सके।
वीरप्पा मोइली के सुधार आयोग की भूमिका
UPA सरकार के दौरान वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था। यह आयोग भारतीय प्रशासनिक तंत्र को सुधारने के उद्देश्य से गठित किया गया था। आयोग ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की थीं, जिनमें “लेटरल एंट्री” भी शामिल था। उनका मानना था कि यदि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सिविल सर्विस में शामिल होते हैं, तो यह सरकार की नीतियों और योजनाओं को और प्रभावी बना सकता है।
मोइली के आयोग की सिफारिशें UPA सरकार के सुधारवादी दृष्टिकोण का एक हिस्सा थीं। उन्होंने सुझाव दिया कि बाहरी पेशेवरों को उच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने क्षेत्रों की विशेषज्ञता को सरकारी कामकाज में ला सकें। यह सिफारिश प्रशासनिक ढांचे को अधिक लचीला और दक्ष बनाने के लिए की गई थी।
UPA सरकार का सुधारवादी दृष्टिकोण
UPA सरकार ने अपने कार्यकाल में कई सुधारवादी कदम उठाए। उनके द्वारा शुरू किए गए सुधारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और प्रशासनिक सुधार शामिल थे। “लेटरल एंट्री” का विचार भी इन्हीं सुधारों का हिस्सा था। यूपीए सरकार का मानना था कि देश को प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है, और “लेटरल एंट्री” एक महत्वपूर्ण कदम था।
UPA सरकार का यह दावा महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान समय में भी यह विषय चर्चाओं में है। वर्तमान सरकारें भी “लेटरल एंट्री” की नीति को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। लेकिन यूपीए का कहना है कि इसका श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही इसे पहली बार प्रस्तावित किया था।
लेटरल एंट्री: सुधार का महत्व
“लेटरल एंट्री” का अर्थ है कि सरकारी सेवाओं में बाहरी विशेषज्ञों को सीधा प्रवेश दिया जाए। इसका उद्देश्य उन लोगों को शामिल करना है जो सरकारी सेवाओं से बाहर होते हैं, लेकिन जिनके पास विशेषज्ञता और अनुभव होता है। इससे सरकार को अपने प्रशासनिक ढांचे में नए विचार, विशेषज्ञता और पेशेवर दृष्टिकोण मिलते हैं।
UPA सरकार का मानना था कि भारत जैसे बड़े देश में, जहां चुनौतियों का सामना करने के लिए विशेष ज्ञान और अनुभव की आवश्यकता होती है, वहां लेटरल एंट्री जैसे कदम बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
निष्कर्ष
UPA सरकार का दावा है कि “लेटरल एंट्री” की सिफारिश का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनके शासनकाल के दौरान वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस विचार को प्रस्तावित किया था। यूपीए सरकार के सुधारवादी दृष्टिकोण का यह एक हिस्सा था, जो भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को और अधिक प्रभावी और कुशल बनाने के लिए उठाया गया कदम था।
आज भी “लेटरल एंट्री” का विचार प्रासंगिक है और सरकारें इसे अपने प्रशासनिक तंत्र में लागू कर रही हैं। लेकिन यूपीए सरकार का दावा है कि इस सुधार का आधार उनके शासनकाल में ही रखा गया था, और इसका श्रेय उन्हें मिलना चाहिए।
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